Tuesday, August 22, 2017

तुम्ही कन्हैया बरसाते हो


अजर अमर अमृत की वर्षा, तुम्ही कन्हैया बरसते हो... 
खनक उठे दिलों में मोहन, तुम्ही बेस हो काल गति में... 
जहां तुम्हीं से प्रेम की भाषा शुरू हुई है ख़तम हुई है... 
मेरे हृदय में तुम्ही हो कान्हां  और कहीं  न तुम बसे हो... 
अजर अमर अमृत की वर्षा, तुम्ही कन्हैया बरसते हो...

मदन मोहन की एक ही राधा, एक ही मीरा श्याम तुम्ही हो..... 
दो युगो में जो प्रेम रहा है, द्वेष नहीं कंही हुई है... 
मेरे कण कण बसे जो,मोहन  धन धान्य से तृप्त हुआ हूँ... 
नमन है तुमको सत सत मोहन, प्रेम की मूरत गोपाल तुम ही हो.. 
अजर अमर अमृत की वर्षा, तुम्ही कन्हैया बरसते हो... 
















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