Sunday, November 20, 2011

सावधान रह!

हुजुर तू ने मेरी फ़रियाद कहाँ सुनी,
इस जहां में मेरी ऐसी जाल क्यूँ बुनी?
कहता रहा इस गली के कुत्तो से,
सावधान रह !,
यहाँ के कुते काटने को दोड़ते है ।

हुजुर तू ने मेरी आदत क्यूँ छिनी,
बुरी को छोड़ अच्छे को क्यूँ गिनी,
बहुत तकलीफ है इस बेदर्द जहां से,
सावधान रह !,
यहाँ की आदते जान लेने को दोड़ती है।