Saturday, July 30, 2011

परेशान आदमी

आज की रात इतना सुनसान सा क्यों है?
हर वक़्त आदमी परेशान सा क्यों है?
मुश्किलों में आदमी दौड़ता रहता है,
दिल में उमंग लाना गुनाह सा क्यूँ है,
आज की रात इतना सुनसान सा क्यों है।

हम भी चले है उसी डगर पर,
जिस डगर पर हर आदमी चलते है,
रास्ते में भटक गए, हर रास्ता अंजान सा क्यों है,
आज की रात इतना सुनसान सा क्यों है,
हर वक्त आदमी परेशान सा क्यों है।

कुछ करो तो दिल से आती आवाज़ सी क्यों है,
आदमी अकेला है दिल मना करता क्यों है,
सच यही है की , डर की राह पर हैं,
आज की रात इतना सुनसान सा क्यों है।
हर वक्त आदमी परेशान सा क्यों है।

Friday, July 29, 2011

एक चमत्कार

कितनी गुमनाम जिंदगी के साथ जी रहा था...
एक चमत्कार हुआ...
चमकता मोती मिला...
जिससे हाथों का हार हुआ।
बंदिसे बन गयी है...
कठिनाइओं की लकीरों से,
हाय! ये क्या हुआ मोती का रंग,
फीका क्यों पड़ने लगा है ?
यह मेरे देखने का दोष है या कुछ और...
चमक बरक़रार है, ये तो प्यार है...
हाँ ! ये मोती की चमक है जिससे,
मुझको प्यार है।

यूँ ही किसी को भुलाया जा नही सकता

इतने दिनों से जिसने साथ निभाया था,
जिसने हमको अपने दिल में बसाया था,
उसके बिना मेरा मन गा नहीं सकता,
यूँ ही किसी को भुलाया जा नही सकता।

अब उसके लिए सदा फ़रियाद करता हूँ,
रहे सदा याद यह बात करता हूँ,
इसके अलावा मेरे मन को दूसरा भा नही सकता,
यूँ ही किसी को भुलाया जा नही सकता

रूठा है हमसे, हमसे क्या भूल हुई,
इस तरह अपने दिल की बत्ती गुल हुई,
अपने मन की बात समझाया जा नही सकता,
यूँ ही किसी को भुलाया जा नही सकता।

भूल जाना ही सबसे बेहतर बात होगी,
क्योंकी उसे भी जिंदगी जीने की चाह होगी,
सोच कर मन कहता, यह सोचा जा नही सकता,
यूँ ही किसी को भुलाया जा नही सकता।

Thursday, July 28, 2011

आज के दिन अकेला लग रहा मन है


आज के दिन अकेला लग रहा मन है,
न कोई साथी ना कोई संग है,
दिल है खाली न कोई उमंग है,
आज के दिन अकेला लग रहा मन है।

कल हमारे संग दोस्तों का साथ था,
उनके साथ बिताया हर वह याद था,
पर आज हमारे दिल में गम ही गम है,
आज के दिन अकेला लग रहा मन है।

मस्ती के क्षणों को मैं याद करता हूँ,
वह क्षण लौट है यह फ़रियाद करता हूँ,
पर दिल है खोजता हर वह फन है,
आज के दिन अकेला लग रहा मन है,

प्यासों को प्यास इतनी सताती है,
जैसे कौओ की प्यासी कहानी याद आती है,
पर दिल है की भूलता नहीं यह क्षण है,
आज के दिन अकेला लग रहा मन है।

इस क्षण को मैं जीवन में ढाल चूका हूँ,
अब न कोई दोस्त बनाऊंगा यह साध चूका हूँ,
पर दिल है खोजता हर वक़्त नया कण है,
आज के दिन अकेला लग रहा मन है,

Wednesday, July 27, 2011

काश मैं लड़की होता

प्रभु तू हमको दे वरदान,
लड़की सा हो मेरा मान,
मैं भी लडको को फसाती,
और फिर में गाना गाती,
रखती मैं लडको पर ध्यान,
प्रभु तू हमको दे वरदान ।

चेहरा मेरा सुन्दर होगा,
ऊपर से क्रीम पाउडर होता,
चमक चमक कर चेहरा मेरा,
सिटी मरने का देता ज्ञान,
प्रभु तू हमको दे वरदान ।


मैं भी पीछे मुड़ती मुस्काती,
और मैं थोडा सा सरमाती,
बात मैं करने उससे जाती,
करता मुझसे वह पहचान
प्रभु तू हमको दे वरदान ।

मैं भी जींस और शर्ट पहनती,
लडको को मैं घायल करती,
काम मैं सीमा के अन्दर करती,
होता मेरा भी एक जान,
प्रभु तू हमको दे वरदान ।

कहानी मैं यह रच सकता नहीं,
नियम प्रकृति का बदल सकता नहीं,
नहीं चाहता लड़की सा मान,
प्रभु तू हमको दे वरदान,
लड़का सा हो मेरा मान,
लड़का सा हो मेरा मान ।

Monday, July 25, 2011

इससे पहले की साँझ ढले

इससे पहले की साँझ ढले
सब और अँधेरा छा जाये,
तू खुद को इतना रोशन कर,
की सूरज भी घबरा जाये,
क्यूँ औरो के एहसानों पर,
हम जीते और मरते है,
आ जा अपने बलबूते पर,
मुस्किल को मुस्किल आ जाये।

तक़दीर का खेल

इस दुनिया में तक़दीर का खेल बड़ा निराला है,
कंही सुखा तो कंही भरा हुआ प्याला है,
कंही आदमी मस्ती में सोता है,
तो कंही आदमी भूखे नंगे बदन रोता है,

तो कंही दिन का उजाला रात से अधिक काला है,
तो कंही रात को ही दिन बना डाला है,
इस दुनिया में तक़दीर का खेल बड़ा निराला है,
कंही सुखा तो कंही भरा हुआ प्याला है.

Saturday, July 23, 2011

आदमी

आदमी का ईमान कितना गिर गया है,
नहीं चाहते हुए भी इसका दिमाग फिर गया है,
क्या हो इस आदमी का यह सोच कर परेशान हूँ,
मै इसलिए सोचता हूँ, क्योंकी मैं भी एक इंसान हूँ

आज का मानव, मानव नहीं है,
आज का मानव दानव हो गया है,
अत्याचार रोकने का नहीं,
अत्याचार करने का आदि हो गया है,
क्या हो इस आदमी का यह सोच कर परेशान हूँ,
मै इसलिए सोचता हूँ, क्योंकी मैं भी एक इंसान हूँ

झूठ छुप नही सकती, बुरे किये कर्मो का,
यह चोरी की बात हो या किसी के क़त्ल का,
अरे ओ आदमी यहाँ कुछ बनने आये हो,
चाह कर, यहाँ कुछ करने आये हो,
क्या हो इस आदमी का यह सोच कर परेशान हूँ,
मै इसलिए सोचता हूँ, क्योंकी मैं भी एक इंसान हूँ

Friday, July 22, 2011

अशांत जिंदगी

कितनी अशांत है जिंदगी मेरी, इन्ही खयालो में खोये हुए,
आता है जाता है, बस इसी बनावटी मेलो में,

समझ यही रहे थे की बसजायेंगे इसी दुनिया में,
पर समझ कर यही रह गए की बस जायेंगे इस दुनिया से,
पर इस दुनिया में आदमी फिरता है मारा मारा ,
अक्सर यह तक़दीर ही देती है, ग़मों से उबरने का सहारा,
कितनी अशांत है जिंदगी मेरी, इन्ही खयालो में खोये हुए,

कांटे जो बनकर आये जिंदगी में, कष्ट से ज्यादा जख्म दे गए,
यही पर दोडता हुआ आदमी, जिंदगी से है हारा,
अक्सर यह तक़दीर ही देती है, ग़मों से उबरने का सहारा,
कितनी अशांत है जिंदगी मेरी, इन्ही खयालो में खोये हुए,


किस्मत अपनी साथ नहीं देती, ग़मों में डुबोती जाती है,
सुख की तलाश में दुःख ही सदेव प्राण लेती है,
इसीलिए रुपेश सदेव देता है यह नारा,
अक्सर यह तक़दीर ही देती है, ग़मों से उबरने का सहारा,
कितनी अशांत है जिंदगी मेरी, इन्ही खयालो में खोये हुए,

"यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा"

यह जो राह है मुस्किलो से भरी हुई,
ना जाने कितने कठनाईयो का सामना करना पड़ेगा,
होगी जीत तब तो खुशियाँ मनाएंगे,
यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा ।

बनता काम बिगड़ते समय नहीं लगती,
बिगड़ते काम बनाने का प्रयास करना पड़ेगा,
फिर भी जीने के लिए इंसान को
यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा

आज के दिनों में नौकरी का सावल छोड़ो,
कटोरा लेकर भीख मांगना पड़ेगा,
जिंदगी इसी तरह चलाने के लिए
यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा ।

बहुत उदाहरण मिल जाते है इस दुनिया में,
इंसान को प्रयास करते रहना पड़ेगा,
तभी सफलता मिलेगी हमको जब
यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा ।

आये है ख़ाली हाथ जायेंगे भी ख़ाली हाथ
पैसे का कमाल है देखो, यहाँ रहना पड़ेगा,
आगे की जिंदगी बनने की लिए
यहाँ तो दुःख से पीछा छुड़ाना पड़ेगा ।


Thursday, July 21, 2011

मूंछो पर हावी है दुनिया

मूँछो पर हो गोरव जिसके, उसने अपना नाम किया,
कर दे अपना नाम बंधुओ, जिसने मूँछो पर शान किया ।

अभियान चलाया जाता है, मूंछो पर हावी है दुनिया,
मूँछो कटा कट कटते है, फैशन की नयी जवानियाँ
कर दिया सफाचट मूँछो को बन गया नारी के समान,
वह जिंदगी बेकार है, नहीं है जिसको मूँछो पर शान ।

मूँछो पर हो गोरव जिसके, उसने अपना नाम किया,
कर दे अपना नाम बंधुओ, जिसने मूँछो पर शान किया,

हाल है मेरा ख़राब कोई आकर सुन लो

हाल है मेरा ख़राब, कोई आकर सुन लो,
दिल की बातें बताऊंगा, ख़राब हालत सुनाऊंगा ।
किसने सोचा है, वह दिन रहे ना रहे,
लेकिन मैं याद आता ही रहूँगा ।
हाल है मेरा ख़राब कोई आकर सुन लो ।

तुम तो हो मेरे प्रिय दोस्ती तो निभाओगे,
दोस्त तो होते ही है दोस्ती निभाने के लिए,
बुरे वक़्त में काम आने के लिए,
पर कुछ दोस्त भी होते है जो धोखा दिया करते है,
पर वो भी दोस्त ही है जो दुसरो की बुराई सोचता है,
हाल है मेरा ख़राब कोई आकर सुन लो ।

Tuesday, July 19, 2011

झूठ

झूठ से सना जिंदगी, झूठ से बना जिंदगी,
जिंदगी है पापियों का, झूठ से घना जिंदगी|

कीमत कितनी जिंदगी की, पापियों से भरा हुआ,
कोई अब काम न होता, झूठ के भी सिवा,
राह में चलते कभी, भेट होती झूठ से,
पेकेट में नोट होता और पहने सूट से,
कार्य करवाने को हम, झूठ से मजबूर है,
मज़बूरी को झूठ कहें, या झूठ से जिंदगी है,
चार दिन की जिंदगी, झूठ में ही बीत गयी,
जिंदगी की यही सच्चाई, झूठ पर ही टिकी|

झूठ से सना जिंदगी, झूठ से बना जिंदगी,
जिंदगी है पापियों का, झूठ से घना जिंदगी|

Sunday, July 17, 2011

काश! ये पेट ना होता



काश! ये पेट ना होता,
पापों का यह ढेर ना होता,
न होता यहाँ कलह-कलाप
न होता यहाँ विरह-विवाद
होती तो सिर्फ सच्चाई होती,
तो देश में खुशहाली होती,
पेट के कारण बनता बिगड़ता
पेट के कारण ही विवाद सुलझता,
होती घर में सुख और शांति,
तब ना होता दुसरो की बर्बादी,
इसीलिए तो रुपेश कहता है,
काश ये पेट ना होता,
पापों का यह ढेर ना होता.

दर्शन


मुस्कान भरी राहों में तेरी,
फूल सदा बरसाऊगा,
चेहरे पे मुस्कान भरा है,
कार्य करू तुझे पाने का,

खोजता हूँ, ढुढता हूँ,
तुझको अपने राहों में,
करता हूँ दर्शन तुम्हरा,
हर दिन अपने सपनो में,
दर्शन करने हेतु तेरा,
मंदिर सदा बनवाऊंगा,
चेहरे पे मुस्कान भरा है,
कार्य करू तुझे पाने का,

पत्थर भी कमजोर होगी,
मेरी इस तपस्या से,
कार्य करूँगा ऐसा एक दिन,
प्रेम भरा होगा मन में ,
जीवन की सच्चाई होगी,
डर ना होगा प्राणों का,
चेहरे पे मुस्कान भरा है,
कार्य करू तुझे पाने का

Saturday, July 16, 2011

कवि बनने की अभिलाषा


कवियों के तरह तरह की कविता,
देख हमारे मन में,
मैं भी कभी सोचता हूँ
की कविता लिख डालूँ ।

पर जब मैं लिखने बैठा,
उठे मन में हजारो ख्याल,
तब मैंने फिर यह सोचा,
अच्छी अच्छी बातो को रखकर
एक नई कविता लिख डालूँ ।

शुरू किया मैं पहली पंक्ति
दूसरी पंक्ति में अटक गया,
मन को देख देख कर
दूसरी पंक्ति भी लिख डाला ।

कुछ इसी तरह कुछ उसी तरह
बनता गया उलझता गया,
अंत में मैंने कविता,
कवियों की तरह लिख डाला ।

वतन के लिए


एक चेहरा देखा है गुलिस्तां में,
मुस्कुराता हुआ आया है,
ख़ुशी की लहर अपने संग
और अमन का सन्देश लाया है.

बिक गयी अपनी ये जमीर
दुसरो के हाथो से,
नहीं कोई है जो अपना,
इसे छुडाये सैतानो से.

इसलिए वतन के रखवालो के,
शुक्रिया अदा करते है हम,
जिसने वतन पर जान देना,
एक हक़ अपना कहा है.

बदल देंगे जरे जरे दुश्मनों के,
और शांति का पैगाम भी देंगे,
न हथियार न बम न बारूद से,
सत्य अहिंसा से ही हम उन्हें जीत लेंगे.