Friday, September 16, 2011

एक दिल चार बात

एक दिल चार बात
हर कलि हर रात
न दिन है न शाम है
कोशिशे ही नाकाम है,
काजल की कजरी
आँखों का नूर
जाता रहा है चास्मेबदुर
चला है कोई उपहार लेकर
बांटता चल प्यार लेकर
न देगा तो कहां ले जायेगा
सारा प्यार यहीं धरा रह जायेगा।

साथ

अक्सर डरता हूँ अपने अतीत से,
शायद ये न अलग कर दे अपने मित से,
आज ये बताना चाहता हूँ मैं सरेआम,
बहुत मुस्किल है निकलना इस जिंदगी से।

आदत से बहुत लाचार हूँ मैं,
अपने आप का गुनेहगार हूँ मैं,
मैं नहीं जानता कौन बचाएगा मुझे,
बस यही जानता हूँ बीमार हूँ मैं।

मदद की गुहार लगाई आवाज ना मिला,
दिल समझने वाला कोई दिलदार ना मिला,
बहुत अकेला लगता है, अकेलेपन को दूर करो कोई,
पर वेसा कोई मज़बूत दावेदार ना मिला।


Friday, September 2, 2011

जीने की राह

अंधरे में एक रौशनी की चमक,
दिल में जैसे सुरों के तार जगाती है,
लाख कठिन हो पाना मगर,
दिल में अकसर याद आती है,
पतली सी डगर से गुजरते हुए,
एक दिशा में चलते हुए,
मंजिल के करीब पहुच कर,
अकसर मंजिल ही खो जाती है,
शीतल छाँव में पेड़ के नीचे,
आराम करते हुए याद आती है,
बस जोश भर देने की कसक है,
मीठी सी दर्द की भनक है,
बस इसी तरह जिंदगी हमें,
जीने की राह बताती है।



तेरी याद

इस नादान दिल को समझाऊ कैसे, उसके बिन रह पता नहीं है,
आखें बंद करता हूँ रातो में, उसके बिना कुछ आता नहीं है,
दो बातें कर ले मुझसे, कंही तेरी तन्हाई ना मार डाले,
तेरे बिन ये दिल गुमसुम, ये दिल रह पता नहीं है।

अपनों से कब तक बातें करू, कब तक रातो को जागा करू,
तू ही बता दे ये खुदा कैसे उसे महसूस करू,
उसके दिल की गहराई में एक दिया जला दे,
वो मुझको देखे और मैं उसे देखा करू।