Wednesday, April 13, 2011
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से |
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से,
ये दुनिया मुझे सताती बहुत है,
ये अजब गजब के लोग मुझे रुलाते बहुत है,
ये मिटटी ये नदियाँ ये पत्थर बहुत है,
जाना है मुझको किनारा बहुत है,
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से
माँगा मैंने इस मन से बहुत कुछ,
ना मिला तो छिना झपटा बहुत से
ये गलियों की रातें सुनसान मिली और,
ये महलो की दीवारे ख़ामोश बहुत है,
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से
रोया हूँ चीखा चिलाया बहुत ही,
ना जाने किसी ने आवाज सुनी हो,
बस एक जहां सुकून मिलता है,
यही माँ के आँचल में संसार बहुत है,
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से
देखी है दुनिया अपने नज़र से,
ना कोई है अपना...ना कोई है अपना,
रख दे तू अपना हाथ सर पे माँ,
ये जीवन सफल हो यही बहुत है,
ढँक ले आज तू माँ अपने इस आँचल से
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